योग करो रोज करो...
29 Jul 2023
Give some rest to your body & mind and explore yourself. You will find nothingness in the form of peace, calmness, joy, happiness and...
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Immunity कैसे बढ़ाएं/ योग करो रोज करो
दोस्तों आप सभी लोग जानते हैं इस समय पूरी दुनिया एक गंभीर बीमारी से जूझ रही है। इस बीमारी ने देखते ही देखते पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। बहुत ही कम समय में इस बीमारी ने करोड़ों लोगों को अपना शिकार बना लिया है और लाखों लोगों ने इस बीमारी के चलते अपनी जान गवां दी है, और भविष्य में ना जाने कितने और लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ सकती है, जिसके बारे में सोच कर ही रूह कांप उठती है। इस बीमारी से डरने का सबसे बड़ा कारण इस बीमारी की दवाई का उपलब्ध ना होना है। आशा करते हैं कि वैज्ञानिक जल्दी से जल्दी इस बीमारी की दवाई खोज लेंगे और समाज को एक बड़ी आपदा से बचा लेंगे।
दोस्तों समय समय पर समाज में छोटी बड़ी बीमारियां परिस्थितियों, मौसम तथा अन्य कारणों से अपना प्रकोप दिखाती रहती है। जो अलग अलग लोगों को अलग अलग प्रकार से प्रभावित करती हैं, मतलब किसी को कम प्रभावित करती हैं और किसी को अधिक प्रभावित करती हैं। जिस व्यक्ति की immunity अथार्त प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है वह व्यक्ति कम बीमार होता और अगर बीमार होता है तो जल्दी स्वस्थ हो जाता है। इसके विपरीत जिस व्यक्ति की immunity काम होती है वह व्यक्ति जल्दी और बार बार बीमार होता है। कई बार इस कम immunity के गंभीर परिणाम होते हैं। इससे आप समझ सकते हैं कि मजबूत immunity हमारे लिए कितनी आवश्यक है।
हम अपने शरीर की immunity को कई तरीकों से बढ़ा सकते हैं। उचित खानपान और व्यायाम अथवा योग सबसे कारगर तरीके हैं जिससे हम अपनी immunity को बढ़ा सकते हैं। कहने को तो हम तेजी से विकास कर रहे हैं, लेकिन इतने विकास के बाद भी हमारे पास शुद्ध भोजन, स्वच्छ जल, साफ वायु और पर्याप्त नींद नहीं है। दोस्तों ये विकास कम और भेड़चाल ज्यादा लगती है, जिसमें हम उचित रहन सहन, खानपान, व्यायाम आदि को भुलाकर दुनिया की चकाचौंध में खो से गए हैं।
दुनिया के सभी देशों ने समय समय पर इस शरीर को स्वस्थ रखने के अनेक तरीके बताए हैं। लेकिन भारत में मनुष्य शरीर को ही धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष का साधन माना है, इसलिए भारत में मनुष्य शरीर को स्वस्थ रखने के अनेकों उपाय बताए हैं। इनमें उचित खानपान, उचित निद्रा, उचित व्यवहार तथा व्यायाम अर्थात योग प्रमुख हैं। दोस्तों मनुष्य विभिन्न परिस्थितियों से बंधा रहता है, इसलिए वो चाहकर भी उन चीजों को नहीं कर पाता जिनको वो करना चाहता है। लेकिन अगर स्वास्थ्य की बात हो तो उसको कम से कम अपने शरीर को स्वस्थ रखने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए, ये उसके लिए भी अच्छा है और उसके परिवार के लिए भी। इन सब उपायों में योग ऐसा उपाय है जिसको उसे करना ही चाहिए।
विकास और विलासिता के कारण आज लोग उस काम को भी नहीं करते जिसको वो कर सकते हैं। वे समझते हैं कि उनके पास पैसा है तो वो क्यों अपने शरीर को कष्ट दें। इस तरह से वो जाने अनजाने अपने शरीर को कमजोर करते हैं, और अपने शरीर को बीमारियों का घर बना लेते हैं। इसी तरीके से लंबे समय तक अगर हम अपनी शारिरिक क्रियाओं को कम करते हैं तो हम विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो सकते हैं, और कुछ मामलों में ये बीमारियां काफी गंभीर हो सकती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि स्वस्थ रहने के लिए हमारे शरीर का क्रियाशील होना आवश्यक है।
इसको आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं।
आप सभी ने अपने घरों में रोटियां बनती देखी होंगी। रोटी बनाने से पहले आटे को उचित मात्रा में गूंथा जाता है, फिर उसके बाद रोटी बनाई जाती है। कभी कभी गुथा हुआ आटा बच जाता है और उस गुथे हुए आटे को अगले दिन इस्तेमाल करते हैं। आप ने देखा होगा जो गुथा हुआ बचा आटा है वो कल वाले ताजा गुथे हुए आटे के मुकाबले थोड़ा सख्त हो गया है, और उससे रोटी बनाने के लिए उसे थोड़ा और गूँथना पड़ता है अथवा क्रियाशील करना पड़ता है। इसी प्रकार अगर हम अपनी शारीरिक क्रियाओं को कम करने लगते हैं तो हमारा शरीर भी अकड़ने लगता है और हमारे शरीर की flexibility कम होने लगती है और हम अनेक प्रकार की बीमारियों से घिर जाते हैं।
दोस्तों अब आप समझ गए होंगे कि शरीर की immunity को बढ़ाने के लिए अथवा एक स्वस्थ शरीर के लिए शरीर का क्रियाशील होना आवश्यक है, और यह क्रियाशीलता हमें योग से मिल सकती है। योग में अनेकों ऐसे आसान और प्राणायाम हैं जिससे हम अपनी शरीर की immunity को बढ़ा सकते हैं तथा अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं।
दोस्तों वैसे तो योग में अनेकों आसान, प्राणायाम, बंध, मुद्राएं आदि हैं, लेकिन आज की परिस्थितियों और एक सरल शुरुआत के लिए आप इन तीन क्रियाओं को आज से ही शुरू कर सकते हैं।
1. भस्त्रिका
2. कपालभाति
3. अनुलोमविलोम
योग क्या और क्यों -
दोस्तो आजकल हम चारों तरफ योग की चर्चा देख और सुन रहे हैं। अधिकाँश लोगों के मन में जिज्ञासा है कि आखिर योग है क्या, इससे क्या होता है, इसके क्या फायदे हैं, इसका उद्देश्य क्या है, यह किसके लिए है इत्यादि। दोस्तों आज हम योग के बारे में विचार - विमर्श करेंगे और इसको समझने की कोशिश करेंगे।
दोस्तों भारत में योग का इतिहास बहुत पुराना है। योग भारत की दिनचर्या का एक स्वाभाविक हिस्सा था, लेकिन समय के साथ और विदेशी आक्रमणों के कारण भारत में योग को भुला ही दिया गया था। भारत की परंपरा में अथवा भारतीय मनुष्य के जीवन में योग की महत्ता का आप इसी बात से अनुमान लगा सकते हैं कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को एक योगी बनने का उपदेश दिया था। आइये योग को संक्षेप में जानने का प्रयास करते हैं।
दोस्तो आजकल हम चारों तरफ योग की चर्चा देख और सुन रहे हैं। अधिकाँश लोगों के मन में जिज्ञासा है कि आखिर योग है क्या, इससे क्या होता है, इसके क्या फायदे हैं, इसका उद्देश्य क्या है, यह किसके लिए है इत्यादि। दोस्तों आज हम योग के बारे में विचार - विमर्श करेंगे और इसको समझने की कोशिश करेंगे।
दोस्तों भारत में योग का इतिहास बहुत पुराना है। योग भारत की दिनचर्या का एक स्वाभाविक हिस्सा था, लेकिन समय के साथ और विदेशी आक्रमणों के कारण भारत में योग को भुला ही दिया गया था। भारत की परंपरा में अथवा भारतीय मनुष्य के जीवन में योग की महत्ता का आप इसी बात से अनुमान लगा सकते हैं कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को एक योगी बनने का उपदेश दिया था। आइये योग को संक्षेप में जानने का प्रयास करते हैं।
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पृथ्वी और सूर्य की दूरी - हनुमान चालीसा -
दोस्तों भारत अपने ज्ञान विज्ञान के लिए सारे विश्व में जाना जाता है।भारतीय ग्रंथो, धर्म शास्त्रों में ज्ञान विज्ञान की बातों को देखकर आज के वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं, कि जिन विषयों को आज का आधुनिक विज्ञान जानने का प्रयास कर रहा है उस विषय में भारत में सदियों पहले गंभीर चिंतन मंथन हो चुका है। भारत में ज्ञान विज्ञान की एक लंबी परंपरा रही है, जो वेदों, उपनिषदों, पुराणों, आरण्यकों आदि के माध्यम से हमारे बीच में उपलब्ध है। दोस्तों ऐसे ही एक ज्ञान का स्रोत हमारी हनुमान चालीसा है, जो है तो एक भक्ति काव्य, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा है। इस हनुमान चालीसा में एक स्थान पर पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी को बड़ी ही सरलता से समझाया गया है। दोस्तों समझने की कोशिश करते हैं कैसे हनुमान चालीसा में पृथ्वी और सूर्य की दूरी को समझाया गया है।
आप सभी ने हनुमान चालीसा की इस चौपई को जरूर पढ़ा होगा।
जुग सहस्र जोजन पर भानु,
लील्यो ताहिं मधुर फल जानु।
दोस्तों इस चैपाई में गोस्वामी तुलसीदास जी बताने का प्रयास कर रहे हैं कि कैसे भगवान हनुमान जी ने बाल्य अवस्था में पृथ्वी से इतनी दूर सूर्य को एक फल समझ कर निगल लिया। आइये समझते हैं वो दूरी कितनी है।
इसको समझने के लिए हमें जुग , सहस्र और जोजन को समझना होगा।
जुग को युग, दिव्य युग, महायुग भी कहते हैं। ये सब समय के पौराणिक पैमाने हैं। हम मनुष्यों का एक वर्ष देवताओं के एक दिन के बराबर होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जुग का आशय 12000 वर्ष है।
सहस्र का अर्थ आप सभी लोग जानते होंगे। सहस्र का अर्थ 1000 होता है।
इसी प्रकार जोजन दूरी मापने का पैमाना है। एक जोजन लगभग 13 किलोमीटर के बराबर होता है।
अब आप समझ सकते हैं -
जुग = 12000
सहस्र = 1000
जोजन = 13
इन सब को गुणा करने पर आप को पृथ्वी और सूर्य की दूरी मिल जाएगी।
= 12000*1000*13
= 15,60,00,000 किलोमीटर
दोस्तों अगर आप आज के आधुनिक विज्ञान के हिसाब से देखोगे तो यह दूरी उसी के आसपास है।
दोस्तों भारत अपने ज्ञान विज्ञान के लिए सारे विश्व में जाना जाता है।भारतीय ग्रंथो, धर्म शास्त्रों में ज्ञान विज्ञान की बातों को देखकर आज के वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं, कि जिन विषयों को आज का आधुनिक विज्ञान जानने का प्रयास कर रहा है उस विषय में भारत में सदियों पहले गंभीर चिंतन मंथन हो चुका है। भारत में ज्ञान विज्ञान की एक लंबी परंपरा रही है, जो वेदों, उपनिषदों, पुराणों, आरण्यकों आदि के माध्यम से हमारे बीच में उपलब्ध है। दोस्तों ऐसे ही एक ज्ञान का स्रोत हमारी हनुमान चालीसा है, जो है तो एक भक्ति काव्य, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा है। इस हनुमान चालीसा में एक स्थान पर पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी को बड़ी ही सरलता से समझाया गया है। दोस्तों समझने की कोशिश करते हैं कैसे हनुमान चालीसा में पृथ्वी और सूर्य की दूरी को समझाया गया है।
आप सभी ने हनुमान चालीसा की इस चौपई को जरूर पढ़ा होगा।
जुग सहस्र जोजन पर भानु,
लील्यो ताहिं मधुर फल जानु।
दोस्तों इस चैपाई में गोस्वामी तुलसीदास जी बताने का प्रयास कर रहे हैं कि कैसे भगवान हनुमान जी ने बाल्य अवस्था में पृथ्वी से इतनी दूर सूर्य को एक फल समझ कर निगल लिया। आइये समझते हैं वो दूरी कितनी है।
इसको समझने के लिए हमें जुग , सहस्र और जोजन को समझना होगा।
जुग को युग, दिव्य युग, महायुग भी कहते हैं। ये सब समय के पौराणिक पैमाने हैं। हम मनुष्यों का एक वर्ष देवताओं के एक दिन के बराबर होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जुग का आशय 12000 वर्ष है।
सहस्र का अर्थ आप सभी लोग जानते होंगे। सहस्र का अर्थ 1000 होता है।
इसी प्रकार जोजन दूरी मापने का पैमाना है। एक जोजन लगभग 13 किलोमीटर के बराबर होता है।
अब आप समझ सकते हैं -
जुग = 12000
सहस्र = 1000
जोजन = 13
इन सब को गुणा करने पर आप को पृथ्वी और सूर्य की दूरी मिल जाएगी।
= 12000*1000*13
= 15,60,00,000 किलोमीटर
दोस्तों अगर आप आज के आधुनिक विज्ञान के हिसाब से देखोगे तो यह दूरी उसी के आसपास है।
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भारतीय दर्शन - Indian Philosophy -
दोस्तों जब कभी दर्शन अथवा philosophy की बात होती है तो अधिकांश लोगों को समझ नहीं आता कि यह दर्शन अथवा philosophy क्या है या उनको ये बेकार का विषय लगता है जिसका मनुष्य के लिए कोई उपयोग नहीं है। ये कितनी आश्चर्य की बात है कि अगर हम मनुष्यों की बात करें तो आप देखेंगे कि इस धरती पर अधिकांश लोग किसी ना किसी धर्म को मानते हैं और वे सभी धर्म कुछ मान्यताओं पर आधारित हैं और इन्हीं मान्यताओं को दर्शन अथवा philosophy कहते हैं। वे लोग अपने अपने धर्म की मान्यताओ को तो मानते हैं लेकिन ऊपरी तौर पर। वे अधिक गहराई और पारिभाषिक अथवा शाब्दिक तौर पर नहीं जानते। धर्म के इसी गहरे ज्ञान को दर्शन अथवा philosophy कहते हैं।
इस दुनिया में जितने भी धर्म हैं उन सभी की अपनी मान्यतायें अथवा दर्शन हैं। इसी प्रकार भारत की भी अपनी सुव्यवस्थित दर्शन परंपरा है। आइये संक्षेप भारतीय दर्शन के बारे में जानते हैं और समझने का प्रयास करते हैं कि भारतीय दर्शन की कौन कौन सी शाखाएँ हैं।
भारतीय दर्शन - Indian Philosophy
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आस्तिक दर्शन नास्तिक दर्शन
1.मीमांसा दर्शन 1. बौद्ध दर्शन
2.वेदान्त दर्शन 2. जैन दर्शन
3.सांख्य दर्शन 3. चार्वाक दर्शन
4.योग दर्शन
5.न्याय दर्शन
6.वैशेषिक दर्शन
दोस्तों जब कभी दर्शन अथवा philosophy की बात होती है तो अधिकांश लोगों को समझ नहीं आता कि यह दर्शन अथवा philosophy क्या है या उनको ये बेकार का विषय लगता है जिसका मनुष्य के लिए कोई उपयोग नहीं है। ये कितनी आश्चर्य की बात है कि अगर हम मनुष्यों की बात करें तो आप देखेंगे कि इस धरती पर अधिकांश लोग किसी ना किसी धर्म को मानते हैं और वे सभी धर्म कुछ मान्यताओं पर आधारित हैं और इन्हीं मान्यताओं को दर्शन अथवा philosophy कहते हैं। वे लोग अपने अपने धर्म की मान्यताओ को तो मानते हैं लेकिन ऊपरी तौर पर। वे अधिक गहराई और पारिभाषिक अथवा शाब्दिक तौर पर नहीं जानते। धर्म के इसी गहरे ज्ञान को दर्शन अथवा philosophy कहते हैं।
इस दुनिया में जितने भी धर्म हैं उन सभी की अपनी मान्यतायें अथवा दर्शन हैं। इसी प्रकार भारत की भी अपनी सुव्यवस्थित दर्शन परंपरा है। आइये संक्षेप भारतीय दर्शन के बारे में जानते हैं और समझने का प्रयास करते हैं कि भारतीय दर्शन की कौन कौन सी शाखाएँ हैं।
भारतीय दर्शन - Indian Philosophy
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आस्तिक दर्शन नास्तिक दर्शन
1.मीमांसा दर्शन 1. बौद्ध दर्शन
2.वेदान्त दर्शन 2. जैन दर्शन
3.सांख्य दर्शन 3. चार्वाक दर्शन
4.योग दर्शन
5.न्याय दर्शन
6.वैशेषिक दर्शन
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नशे का नाश - योग
दोस्तों आज के इस आधुनिक युग में मनुष्य ने अभूतपूर्व सुख सुविधाओं का अंबार लगा दिया है। वो जो चाहता है उसे पलभर में पा लेता है। फिर चाहे वो महँगी से महँगी गाड़ी हो, महंगे से महंगे कपड़े हों, स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन हो, देश विदेश की सैर हो या बाकी और सभी सुख सुविधाएं हों। जितने हम आधुनिक हो रहे हैं उतने ही हमारे खानपान की चीजें, रहन सहन का तरीका, उठने सोने का समय, देर रात पार्टी करने की आदत, लोगों से मिलने के तौर तरीके सब अस्तव्यस्त हो गए हैं। इस आधुनिकता की दौड़ में सबसे बुरा असर हमारे खानपान पर पड़ा है। नशा हमारे खानपान का एक अहम हिस्सा बन गया है। आज के इस दौर में बिना नशे के कोई काम नहीं होता है। किसी के घर में अगर कोई शुभ कार्य होता है तो उसमें भी नशे का सेवन होता है, जैसे शादी ब्याह, जन्मदिन आदि। आज के समाज में नशे का इतना प्रचलन हो गया है कि नशा ना करने वाले को लोग टेड़ी नजर से देखते हैं। नशे के इस जाल में बड़ों के साथ साथ छोटे बच्चे भी फँसते जा रहे हैं। आज के युवा स्कूल में, कॉलेज में, ऑफिस में जँहा मौका मिले वहीं नशे का सेवन करने लगते हैं, और धीरे धीरे इस दलदल में फँसते चले जाते हैं। इस भागदौड़ भरी जिंदगी और सुख सुविधाओं का आंनद लेते लेते लोग कब नशे के जाल में फंस जाते हैं उन्हें पता ही नहीं चलता। उन्हें जब इस बात का पता चलता है कि वो नशे के जाल में फँस चुके हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और वो चाहकर भी इस दलदल से बाहर नहीं निकल पाते। इस नशे की वजह से उनका अच्छा भला परिवार, अच्छी भली नौकरी सब बर्बाद हो जाता है।
अधिकांश लोगों को इस बात का अहसास नहीं होता है कि नशा एक बुरी लत है जो उनके लिए, उनके परिवार के लिए और समाज के लिए एक ज़हर है जो उनको और समाज को अंदर ही अंदर से खोखला कर रहा है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनको इस बात का एहसास होता है कि नशा एक ज़हर है जो उनको अंदर ही अंदर से खोखला कर रहा है, उसका परिवार बर्बाद हो रहा है, लेकिन वो नशे के इतने आदि हो जाते हैं कि की उनका बस उनके शरीर और मन पर नहीं चलता और वो ना चाहते हुए भी नशा करते है।
लेकिन अगर कोई व्यक्ति इच्छाशक्ति दिखाए तो वो इस नर्क से बाहर निकल सकता है। जरूरत है तो बस एक इच्छा की। एक इच्छा की, कि मैं इस दलदल से बाहर निकलना चाहता हुँ, इस नर्क से बाहर निकलना चाहता हुँ। अपने लिए, अपने परिवार के लिए, समाज के लिए। बस चाहिए तो बस एक दृढ़ इच्छाशक्ति की। ऐसे लोगों के लिए योग एक रास्ता हो सकता है। अगर वो चाहे तो योग के माध्यम से वो इस नर्क से बाहर निकल सकता है।
तो दोस्तों आइए जानते हैं कैसे हम योग के माध्यम से नशे से मुक्ति पा सकते हैं।
निम्नलिखित प्राणायाम और क्रियाकलापों के माध्यम से आप नशे का नाश कर सकते हो -
भस्त्रिका
कपालभाति
अनुलोमविलोम
भ्रामरी
ॐ का उच्चारण
बाह्य प्राणायाम
अग्निसार
जलनेति
सूत्रनेति
कुंजर क्रिया
शंख प्रक्षालन
सामरानी कप
अजवाइन का पानी
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वेद और षड्दर्शन
दोस्तों वेद भारतीय संस्कृति का मुख्य आधार है । वेदों के द्वारा ही सम्पूर्णं भारतीय संस्कृति का पोषण और मार्गदर्शन होता है।वेदों के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। वेद समस्त समस्याओं का समाधान तथा ज्ञान का अनंत भंडार है। वेद ही चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का आधार है। वेद ही हमें समाज के आचरण के बारे में बताता है। वेद ही हमें सामाजिक नियम कानून के हिसाब से अपनी जीविका अर्जित करने का ज्ञान देता है। वेद ही हमें अलग अलग परेशानियों का, बीमारियों का समाधान देता है। वेद ही हमें विभिन्न ओषधियों का ज्ञान देता है। वेद ही हमें अर्थशास्त्र, सामाजिक शास्त्र, न्यायशास्त्र, राजनीतिशास्त्र का ज्ञान देता है। वेद ही हमें बताता है कि हमें क्या कर्म करने चाहये, कैसे करना है ये बताता है, कब करना है ये बताता है, और वेद ही हमें ये बताता है कि कौन सा कर्म हमें नहीं करना चाहिये। इस प्रकार वेद ही सम्पूर्ण मानव जाति के लिए करने योग्य कर्म और ना करने योग्य कर्म बताता है। अर्थार्थ वेद इस लौकिक तथा अलौकिक संसार में मनुष्य के कर्म और अकर्म सब बताता है।
दोस्तों वेद मनुष्य को ना सिर्फ लौकिक बल्कि अलौकिक ज्ञान भी देता है। लौकिक अर्थात सामाजिक और सांसारिक ज्ञान। लौकिक ज्ञान तो हम व्यवहार में देखसुन लेते हैं, लेकिन अधिकांश लोग अलौकिक ज्ञान से अनभिज्ञ रहते हैं, क्योंकि अधिकांश लोग संसार के सुख- दुख में उलझे रहते हैं। जो सुखी है वो उस सुख को बनाये रखने का प्रयत्न करते हैं और जो दुखी हैं वो दुख को दूर करके सुख की कामना करते हैं। अधिकांश लोग इन्हीं सामाजिक, सांसारिक अथवा लौकिक बंधनों में उलझे रहते हैं। विरले ही लोग होते हैं जो लौकिक अथवा सांसारिक बंधनों से हटकर अलौकिक ज्ञान अथवा पराज्ञान अथवा ब्रह्मज्ञान के बारे में चिंतन मंथन करते हैं। जब किसी मनुष्य में संसार को अथवा स्वयं को जानने की इच्छा उत्पन्न होती है तो उसके मन में अनेकों विचार पैदा होते हैं, जैसे ये संसार कैसे उत्पन्न हुआ, इस संसार का अंत कैसे होगा, मैं कौन हूँ, मेरा स्वरूप क्या है, ज्ञान क्या है इत्यादि। इन सभी प्रश्नों का उत्तर भी हमें वेदों में मिलता है।
इस प्रकार वेदों में लौकिक, अलौकिक, पराज्ञान, अपराज्ञान, ब्रह्मविद्या आदि सब प्रकार के ज्ञान विज्ञान का अनंत भंडार है, जिसका ज्ञान हमारे ऋषि मुनियों को था। जिसको उन्होंने समय समय पर जिज्ञासुओं को देकर प्राणी मात्र को तृप्त किया।
वेद के मुख्यतः दो भाग हैं -
1. कर्मकाण्ड - वेद के इस भाग में मुख्यतः मनुष्य के कर्मों और अकर्मो के बारे में बताया है, अर्थात इस भाग में उन कर्मों के बारे में बताया जो उसे करने चाहिए और साथ ही उन कर्मों के बारे में भी बताया है जो उसे नहीं करना चाहिए।
2. ज्ञानकाण्ड- वेद के इस भाग में ब्रह्मज्ञान के बारे में विस्तार से बताया है, जैसे ये संसार कैसे उत्पन्न हुआ, इसका अंत कैसे होगा, मैं कौन हूं, ज्ञान क्या है इत्यादि। ज्ञानकाण्ड के इस भाग को उपनिषद और वेदान्त भी कहते हैं।
जैसा कि पहले ही बताया है, हर व्यक्ति अपने अपने दुखों को दूर करने का प्रयत्न करता है फिर भी उसको दुखों से छुटकारा नहीं मिलता। मृगतृष्णा के जैसे जिन चीजों के पीछे मनुष्य सुख समझकर दौड़ता है प्राप्त होने पर वे दुःख ही सबित होते हैं।
दुःख तीन प्रकार के होते हैं।
1- आध्यात्मिक दुःख - वो दुःख जो सीधे अपने आप से सम्बंधित हो, जैसे शारीरिक दुःख, मानसिक दुःख इत्यदि।
2- आधिदैविक दुःख - वो दुःख जो दैवी शक्ति के कारण होता है, जैसे अत्यधिक वर्षा का होना, आंधी तूफान, बिजली आदि के गिरने से होता है।
3- आधिभौतिक दुःख - वो दुःख जो हमें दूसरों से मिलता है, जैसे सांप, बिच्छु आदि के काटने से होता है।
दुःख निवृत्ति करते समय हमारे सम्मुख निम्न चार प्रश्न उत्पन्न होते हैं -
दर्शनों के चार मूल प्रश्न
1- हेय - दुःख का वास्तविक स्वरूप क्या है, जो हेय अर्थार्त त्याज्य है।
2 - हेयहेतु - दुःख कहाँ से उत्पन्न होता है, इसका वास्तविक कारण क्या है, जो हेय अर्थात त्याज्य दुःख का वास्तविक हेतु है।
3 - दुःख का नितांत अभाव क्या है, अर्थात हान किस अवस्था का नाम है।
4 - हनोपाय - अर्थात दुःखनिवृति का साधन क्या है।
तीन मुख्य तत्व
उपरोक्त प्रश्नों पर विचार करते हुए हमारे सामने तीन और प्रश्न उपस्थ्ति होते हैं -
1- चेतनतत्व (आत्मा, पुरुष, जीव) - हम सभी लोग हर समय अपने किसी ना किसी दुःख को दूर करने की कोशिश करते हैं। अगर ये दुःख हमारा स्वभाव या स्वभाविक धर्म होता तो हम इस दुःख को दूर करने का प्रयास ही नहीं करते, अथार्त अगर दुःख हमारा स्वाभाविक धर्म होता तो हम दुःख को महसूस ही नहीं करते, और न ही उसे दूर करने का प्रयास करते। इसलिए हमारे सम्मुख प्रश्न उत्पन्न होता है कि ये दुःख किसको होता है? जिसको दुःख होता है उसका वास्तविक स्वरूप क्या है। यदि दुःख उसका स्वाभाविक धर्म होता तो वह उससे बचने का प्रयत्न ही नहीं करता। इससे प्रतीत होता है कि वह कोई ऐसा तत्व है जिसका दुःख और जड़ता स्वस्भविक धर्म नहीं है। वह चेतन तत्त्व है। इस चेतन तत्व (आत्मा, पुरुष) के पूर्ण ज्ञान से तीसरा प्रश्न 'हान' सुलझ जाता है। अर्थात आत्मा के यथार्थरूप के साक्षात्कार, स्वरूपस्थिति से दुःख का नितांत अभाव हो जाता है।
2 - जड़तत्व (प्रकृति) - इस चेतन तत्व से भिन्न, इसके विपरीत किसी और तत्व के मानने की भी आवश्यकता होती है, जिसका धर्म दुःख है, जहाँ से दुःख की उत्पत्ति होती है और जो इस चेतन तत्व से विपरीत धर्म वाला है। वह जड़तत्व है, जिसको प्रकृति, माया आदि कहते हैं। इसके यथार्थरूप को समझ लेने से पहला और दूसरा दोनों प्रश्न सुलझ जाते हैं। अर्थात दुःख इसी जड़तत्व का स्वाभाविक गुण है ना कि आत्मा का। जड़ और चेतनतत्व में आसक्ति (attachment) तथा अविवेकपूर्ण संयोग ही 'हेय' अर्थात त्याज्य दुःख का वास्तविक स्वरूप है और चेतन और जड़तत्व का अविवेक अथार्त मिथ्याज्ञान (illusion) या अविद्या 'हेयहेतु' अथार्त त्याज्य दुःख का कारण है। चेतन और जड़तत्व का विवेकपूर्ण ज्ञान 'हनोपाय' अथार्त दुःखनिवृति का मुख्य साधन है।
3 - चेतनतत्व (परमात्मा, पुरुषविशेष, ईश्वर, ब्रह्म) - इन दोनों चेतन और जड़तत्व के मानने के साथ एक तीसरे तत्व को भी मानना आवयश्क हो जाता है, जो पहले चेतनतत्व के सर्वांश अनुकूल हो और दूसरे जड़तत्व के विपरीत हो, अथार्त जिसमें पूर्णं ज्ञान हो, जो सर्वज्ञ हो, सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान हो, जिसमें दुःख, जड़ता और अज्ञान का नितांत अभाव हो, जहाँ तक आत्मा का पहुँचना आत्मा का अन्तिम ध्येय हो, जो ज्ञान का पूर्ण भंडार हो, जहाँ से ज्ञान पाकर आत्मा जड़-चेतन का विवेक प्राप्त कर सके और अविद्या के बंधनों को तोड़कर 'हेय' दुःख से सर्वथा मुक्ति पा सके। इस तर्क के द्वारा हमें तीसरे और चौथे प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है, अथार्त यही 'हान' है और 'हनोपाय' भी यही है।
दर्शन
वेदों में बतलाये हुए ज्ञान को दर्शनशास्त्रों में ऋषि मुनियों द्वारा सूत्रों द्वारा समझाया गया है। दर्शन शब्द का अर्थ है ' दृश्यते अनेन इति दर्शनम' जिसके द्वारा देखा जाए अर्थात वस्तु का तात्विक स्वरूप जाना जाए।
षड्दर्शन
इन चारों रहस्यपूर्ण प्रश्नों को समझाने के लिए 'दर्शनशास्त्रों' में इन तीनों तत्वों को छोटे छोटे और सरल सूत्रों में समझाया है। इन दर्शनशास्त्रों में 'षड्दर्शन' अर्थात छः दर्शन मुख्य हैं -
1. मीमांसा दर्शन
2. वेदान्त दर्शन
3. न्याय दर्शन
4. वैशेषिक दर्शन
5. सांख्य दर्शन
6. योग दर्शन
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Immunity कैसे बढ़ाएं/ योग करो रोज करो
दोस्तों आप सभी लोग जानते हैं इस समय पूरी दुनिया एक गंभीर बीमारी से जूझ रही है। इस बीमारी ने देखते ही देखते पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। बहुत ही कम समय में इस बीमारी ने करोड़ों लोगों को अपना शिकार बना लिया है और लाखों लोगों ने इस बीमारी के चलते अपनी जान गवां दी है, और भविष्य में ना जाने कितने और लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ सकती है, जिसके बारे में सोच कर ही रूह कांप उठती है। इस बीमारी से डरने का सबसे बड़ा कारण इस बीमारी की दवाई का उपलब्ध ना होना है। आशा करते हैं कि वैज्ञानिक जल्दी से जल्दी इस बीमारी की दवाई खोज लेंगे और समाज को एक बड़ी आपदा से बचा लेंगे।
दोस्तों समय समय पर समाज में छोटी बड़ी बीमारियां परिस्थितियों, मौसम तथा अन्य कारणों से अपना प्रकोप दिखाती रहती है। जो अलग अलग लोगों को अलग अलग प्रकार से प्रभावित करती हैं, मतलब किसी को कम प्रभावित करती हैं और किसी को अधिक प्रभावित करती हैं। जिस व्यक्ति की immunity अथार्त प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है वह व्यक्ति कम बीमार होता और अगर बीमार होता है तो जल्दी स्वस्थ हो जाता है। इसके विपरीत जिस व्यक्ति की immunity काम होती है वह व्यक्ति जल्दी और बार बार बीमार होता है। कई बार इस कम immunity के गंभीर परिणाम होते हैं। इससे आप समझ सकते हैं कि मजबूत immunity हमारे लिए कितनी आवश्यक है।
हम अपने शरीर की immunity को कई तरीकों से बढ़ा सकते हैं। उचित खानपान और व्यायाम अथवा योग सबसे कारगर तरीके हैं जिससे हम अपनी immunity को बढ़ा सकते हैं। कहने को तो हम तेजी से विकास कर रहे हैं, लेकिन इतने विकास के बाद भी हमारे पास शुद्ध भोजन, स्वच्छ जल, साफ वायु और पर्याप्त नींद नहीं है। दोस्तों ये विकास कम और भेड़चाल ज्यादा लगती है, जिसमें हम उचित रहन सहन, खानपान, व्यायाम आदि को भुलाकर दुनिया की चकाचौंध में खो से गए हैं।
दुनिया के सभी देशों ने समय समय पर इस शरीर को स्वस्थ रखने के अनेक तरीके बताए हैं। लेकिन भारत में मनुष्य शरीर को ही धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष का साधन माना है, इसलिए भारत में मनुष्य शरीर को स्वस्थ रखने के अनेकों उपाय बताए हैं। इनमें उचित खानपान, उचित निद्रा, उचित व्यवहार तथा व्यायाम अर्थात योग प्रमुख हैं। दोस्तों मनुष्य विभिन्न परिस्थितियों से बंधा रहता है, इसलिए वो चाहकर भी उन चीजों को नहीं कर पाता जिनको वो करना चाहता है। लेकिन अगर स्वास्थ्य की बात हो तो उसको कम से कम अपने शरीर को स्वस्थ रखने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए, ये उसके लिए भी अच्छा है और उसके परिवार के लिए भी। इन सब उपायों में योग ऐसा उपाय है जिसको उसे करना ही चाहिए।
विकास और विलासिता के कारण आज लोग उस काम को भी नहीं करते जिसको वो कर सकते हैं। वे समझते हैं कि उनके पास पैसा है तो वो क्यों अपने शरीर को कष्ट दें। इस तरह से वो जाने अनजाने अपने शरीर को कमजोर करते हैं, और अपने शरीर को बीमारियों का घर बना लेते हैं। इसी तरीके से लंबे समय तक अगर हम अपनी शारिरिक क्रियाओं को कम करते हैं तो हम विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो सकते हैं, और कुछ मामलों में ये बीमारियां काफी गंभीर हो सकती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि स्वस्थ रहने के लिए हमारे शरीर का क्रियाशील होना आवश्यक है।
इसको आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं।
आप सभी ने अपने घरों में रोटियां बनती देखी होंगी। रोटी बनाने से पहले आटे को उचित मात्रा में गूंथा जाता है, फिर उसके बाद रोटी बनाई जाती है। कभी कभी गुथा हुआ आटा बच जाता है और उस गुथे हुए आटे को अगले दिन इस्तेमाल करते हैं। आप ने देखा होगा जो गुथा हुआ बचा आटा है वो कल वाले ताजा गुथे हुए आटे के मुकाबले थोड़ा सख्त हो गया है, और उससे रोटी बनाने के लिए उसे थोड़ा और गूँथना पड़ता है अथवा क्रियाशील करना पड़ता है। इसी प्रकार अगर हम अपनी शारीरिक क्रियाओं को कम करने लगते हैं तो हमारा शरीर भी अकड़ने लगता है और हमारे शरीर की flexibility कम होने लगती है और हम अनेक प्रकार की बीमारियों से घिर जाते हैं।
दोस्तों अब आप समझ गए होंगे कि शरीर की immunity को बढ़ाने के लिए अथवा एक स्वस्थ शरीर के लिए शरीर का क्रियाशील होना आवश्यक है, और यह क्रियाशीलता हमें योग से मिल सकती है। योग में अनेकों ऐसे आसान और प्राणायाम हैं जिससे हम अपनी शरीर की immunity को बढ़ा सकते हैं तथा अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं।
दोस्तों वैसे तो योग में अनेकों आसान, प्राणायाम, बंध, मुद्राएं आदि हैं, लेकिन आज की परिस्थितियों और एक सरल शुरुआत के लिए आप इन तीन क्रियाओं को आज से ही शुरू कर सकते हैं।
1. भस्त्रिका
2. कपालभाति
3. अनुलोमविलोम
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दोस्तों आप सभी लोग जानते हैं इस समय पूरी दुनिया एक गंभीर बीमारी से जूझ रही है। इस बीमारी ने देखते ही देखते पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। बहुत ही कम समय में इस बीमारी ने करोड़ों लोगों को अपना शिकार बना लिया है और लाखों लोगों ने इस बीमारी के चलते अपनी जान गवां दी है, और भविष्य में ना जाने कितने और लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ सकती है, जिसके बारे में सोच कर ही रूह कांप उठती है। इस बीमारी से डरने का सबसे बड़ा कारण इस बीमारी की दवाई का उपलब्ध ना होना है। आशा करते हैं कि वैज्ञानिक जल्दी से जल्दी इस बीमारी की दवाई खोज लेंगे और समाज को एक बड़ी आपदा से बचा लेंगे।
दोस्तों समय समय पर समाज में छोटी बड़ी बीमारियां परिस्थितियों, मौसम तथा अन्य कारणों से अपना प्रकोप दिखाती रहती है। जो अलग अलग लोगों को अलग अलग प्रकार से प्रभावित करती हैं, मतलब किसी को कम प्रभावित करती हैं और किसी को अधिक प्रभावित करती हैं। जिस व्यक्ति की immunity अथार्त प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है वह व्यक्ति कम बीमार होता और अगर बीमार होता है तो जल्दी स्वस्थ हो जाता है। इसके विपरीत जिस व्यक्ति की immunity काम होती है वह व्यक्ति जल्दी और बार बार बीमार होता है। कई बार इस कम immunity के गंभीर परिणाम होते हैं। इससे आप समझ सकते हैं कि मजबूत immunity हमारे लिए कितनी आवश्यक है।
हम अपने शरीर की immunity को कई तरीकों से बढ़ा सकते हैं। उचित खानपान और व्यायाम अथवा योग सबसे कारगर तरीके हैं जिससे हम अपनी immunity को बढ़ा सकते हैं। कहने को तो हम तेजी से विकास कर रहे हैं, लेकिन इतने विकास के बाद भी हमारे पास शुद्ध भोजन, स्वच्छ जल, साफ वायु और पर्याप्त नींद नहीं है। दोस्तों ये विकास कम और भेड़चाल ज्यादा लगती है, जिसमें हम उचित रहन सहन, खानपान, व्यायाम आदि को भुलाकर दुनिया की चकाचौंध में खो से गए हैं।
दुनिया के सभी देशों ने समय समय पर इस शरीर को स्वस्थ रखने के अनेक तरीके बताए हैं। लेकिन भारत में मनुष्य शरीर को ही धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष का साधन माना है, इसलिए भारत में मनुष्य शरीर को स्वस्थ रखने के अनेकों उपाय बताए हैं। इनमें उचित खानपान, उचित निद्रा, उचित व्यवहार तथा व्यायाम अर्थात योग प्रमुख हैं। दोस्तों मनुष्य विभिन्न परिस्थितियों से बंधा रहता है, इसलिए वो चाहकर भी उन चीजों को नहीं कर पाता जिनको वो करना चाहता है। लेकिन अगर स्वास्थ्य की बात हो तो उसको कम से कम अपने शरीर को स्वस्थ रखने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए, ये उसके लिए भी अच्छा है और उसके परिवार के लिए भी। इन सब उपायों में योग ऐसा उपाय है जिसको उसे करना ही चाहिए।
विकास और विलासिता के कारण आज लोग उस काम को भी नहीं करते जिसको वो कर सकते हैं। वे समझते हैं कि उनके पास पैसा है तो वो क्यों अपने शरीर को कष्ट दें। इस तरह से वो जाने अनजाने अपने शरीर को कमजोर करते हैं, और अपने शरीर को बीमारियों का घर बना लेते हैं। इसी तरीके से लंबे समय तक अगर हम अपनी शारिरिक क्रियाओं को कम करते हैं तो हम विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो सकते हैं, और कुछ मामलों में ये बीमारियां काफी गंभीर हो सकती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि स्वस्थ रहने के लिए हमारे शरीर का क्रियाशील होना आवश्यक है।
इसको आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं।
आप सभी ने अपने घरों में रोटियां बनती देखी होंगी। रोटी बनाने से पहले आटे को उचित मात्रा में गूंथा जाता है, फिर उसके बाद रोटी बनाई जाती है। कभी कभी गुथा हुआ आटा बच जाता है और उस गुथे हुए आटे को अगले दिन इस्तेमाल करते हैं। आप ने देखा होगा जो गुथा हुआ बचा आटा है वो कल वाले ताजा गुथे हुए आटे के मुकाबले थोड़ा सख्त हो गया है, और उससे रोटी बनाने के लिए उसे थोड़ा और गूँथना पड़ता है अथवा क्रियाशील करना पड़ता है। इसी प्रकार अगर हम अपनी शारीरिक क्रियाओं को कम करने लगते हैं तो हमारा शरीर भी अकड़ने लगता है और हमारे शरीर की flexibility कम होने लगती है और हम अनेक प्रकार की बीमारियों से घिर जाते हैं।
दोस्तों अब आप समझ गए होंगे कि शरीर की immunity को बढ़ाने के लिए अथवा एक स्वस्थ शरीर के लिए शरीर का क्रियाशील होना आवश्यक है, और यह क्रियाशीलता हमें योग से मिल सकती है। योग में अनेकों ऐसे आसान और प्राणायाम हैं जिससे हम अपनी शरीर की immunity को बढ़ा सकते हैं तथा अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं।
दोस्तों वैसे तो योग में अनेकों आसान, प्राणायाम, बंध, मुद्राएं आदि हैं, लेकिन आज की परिस्थितियों और एक सरल शुरुआत के लिए आप इन तीन क्रियाओं को आज से ही शुरू कर सकते हैं।
1. भस्त्रिका
2. कपालभाति
3. अनुलोमविलोम
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पृथ्वी और सूर्य की दूरी - हनुमान चालीसा -
दोस्तों भारत अपने ज्ञान विज्ञान के लिए सारे विश्व में जाना जाता है।भारतीय ग्रंथो, धर्म शास्त्रों में ज्ञान विज्ञान की बातों को देखकर आज के वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं, कि जिन विषयों को आज का आधुनिक विज्ञान जानने का प्रयास कर रहा है उस विषय में भारत में सदियों पहले गंभीर चिंतन मंथन हो चुका है। भारत में ज्ञान विज्ञान की एक लंबी परंपरा रही है, जो वेदों, उपनिषदों, पुराणों, आरण्यकों आदि के माध्यम से हमारे बीच में उपलब्ध है। दोस्तों ऐसे ही एक ज्ञान का स्रोत हमारी हनुमान चालीसा है, जो है तो एक भक्ति काव्य, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा है। इस हनुमान चालीसा में एक स्थान पर पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी को बड़ी ही सरलता से समझाया गया है। दोस्तों समझने की कोशिश करते हैं कैसे हनुमान चालीसा में पृथ्वी और सूर्य की दूरी को समझाया गया है।
आप सभी ने हनुमान चालीसा की इस चौपई को जरूर पढ़ा होगा।
जुग सहस्र जोजन पर भानु,
लील्यो ताहिं मधुर फल जानु।
दोस्तों इस चैपाई में गोस्वामी तुलसीदास जी बताने का प्रयास कर रहे हैं कि कैसे भगवान हनुमान जी ने बाल्य अवस्था में पृथ्वी से इतनी दूर सूर्य को एक फल समझ कर निगल लिया। आइये समझते हैं वो दूरी कितनी है।
इसको समझने के लिए हमें जुग , सहस्र और जोजन को समझना होगा।
जुग को युग, दिव्य युग, महायुग भी कहते हैं। ये सब समय के पौराणिक पैमाने हैं। हम मनुष्यों का एक वर्ष देवताओं के एक दिन के बराबर होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जुग का आशय 12000 वर्ष है।
सहस्र का अर्थ आप सभी लोग जानते होंगे। सहस्र का अर्थ 1000 होता है।
इसी प्रकार जोजन दूरी मापने का पैमाना है। एक जोजन लगभग 13 किलोमीटर के बराबर होता है।
अब आप समझ सकते हैं -
जुग = 12000
सहस्र = 1000
जोजन = 13
इन सब को गुणा करने पर आप को पृथ्वी और सूर्य की दूरी मिल जाएगी।
= 12000*1000*13
= 15,60,00,000 किलोमीटर
दोस्तों अगर आप आज के आधुनिक विज्ञान के हिसाब से देखोगे तो यह दूरी उसी के आसपास है।
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भारतीय दर्शन - Indian Philosophy
दोस्तों जब कभी दर्शन अथवा philosophy की बात होती है तो अधिकांश लोगों को समझ नहीं आता कि यह दर्शन अथवा philosophy क्या है या उनको ये बेकार का विषय लगता है जिसका मनुष्य के लिए कोई उपयोग नहीं है। ये कितनी आश्चर्य की बात है कि अगर हम मनुष्यों की बात करें तो आप देखेंगे कि इस धरती पर अधिकांश लोग किसी ना किसी धर्म को मानते हैं और वे सभी धर्म कुछ मान्यताओं पर आधारित हैं और इन्हीं मान्यताओं को दर्शन अथवा philosophy कहते हैं। वे लोग अपने अपने धर्म की मान्यताओ को तो मानते हैं लेकिन ऊपरी तौर पर। वे अधिक गहराई और पारिभाषिक अथवा शाब्दिक तौर पर नहीं जानते। धर्म के इसी गहरे ज्ञान को दर्शन अथवा philosophy कहते हैं।
इस दुनिया में जितने भी धर्म हैं उन सभी की अपनी मान्यतायें अथवा दर्शन हैं। इसी प्रकार भारत की भी अपनी सुव्यवस्थित दर्शन परंपरा है। आइये संक्षेप भारतीय दर्शन के बारे में जानते हैं और समझने का प्रयास करते हैं कि भारतीय दर्शन की कौन कौन सी शाखाएँ हैं।
भारतीय दर्शन - Indian Philosophy
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आस्तिक दर्शन नास्तिक दर्शन
1.मीमांसा दर्शन 1. बौद्ध दर्शन
2.वेदान्त दर्शन 2. जैन दर्शन
3.सांख्य दर्शन 3. चार्वाक दर्शन
4.योग दर्शन
5.न्याय दर्शन
6.वैशेषिक दर्शन
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